वो
आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,
लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |
केशो को सवारकर
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |
साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |
इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |
- दीप्ति शर्मा
Comments
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |bhaut hi gahri rachna....
सादर
गहरे भाव।
आँजती
केशों को संवारकर
शरमा
नजरें
शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.