मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी आँखो से आँसू बहाऊँगी कभी तुम सुन सको तो सुन लेना स्याह रात की बिसरी बातें मैं तुम्हें बताऊँगी कभी मैं फासलों को मिटाऊँगी कभी मैं कोई किस्सा सु...
जिंदगी की पोटली में बंधी वो सुनहरी यादें यूँ बेनकाब हो रही हैं जैसे किसी पिंजड़े से वो आजाद हो रही हैं । तिरछे आईने को भेद उमड़ घुमड़ रही वो बाहर आने की चेष्टा बयां कर रही है...
उन ऊँची चोटियों को कितना अभिमान है उन पर पड़ रही स्वर्णिम किरणों का आधार ही तो उनका श्रृंगार है । घाटियों की गहराई विजन में ज़ज़्ब यादों की अवहित्था इनकी मिसाल है उन ऊँची ...