मौत

भयावह रूप ले वो क्यूँ,
इस तरह जिद् पर अड़ी है
बड़ी क्रुर दृष्टि से देख रही मुझे
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

ये देख खुश हूँ मैं अपनो के साथ
जाने क्या सोच रही है
कुछ अजीब सी मुद्रा में
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

चली जाऊंगी मैं साथ उसके
नहीं डर है मुझे उसका
फिर क्यों वो संशय में पड़ी है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

कभी गुस्से में झल्ला रही है
कभी हौले हौले मुस्कुरा रही है
इस तरह मुझे वो फँसा रही है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

देख मेरे अपनों की ताकत
और मेरे हौसलों की उड़ान
से वो सकपका रही है
देखो मौत मुझसे दूर जा पड़ी है ।

ले जाना चाहती थी साथ मुझे
अब वो मुझसे दूर खड़ी है
मेरे अपनों के प्यार से वो
छोड़ मुझे मुझसे दूर चली है ।
© दीप्ति शर्मा


Comments

Anonymous said…
बहुत सही
बहुत शक्ति होती है अपनों के स्नेह में, मौत को भी हराने की ताकत...
गहन अभिव्यक्ति...
सुंदर रचना।
गहरी अभिव्‍यक्ति।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर की जाएगी!
सूचनार्थ!
गहन अभिवयक्ति.......
मर्मस्पर्शी ,बेहतरीन सृजन बधाईयाँ जी /
मनोयोग से मौत को ललकारने का प्रयास और अंततः उस पर जीत बहुत सुंदर हैं उत्कृष्ट है. बधाई.
प्यार की शक्ति के आगे सभी नतमस्तक हो जाते हैं ... सुन्दर रचना ...

Popular posts from this blog

कोई तो होगा

ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ

मेरी परछाई