आखिर क्यूँ ?
रास्ते ये सारे मुड़े क्यूँ हैं ?
और तकदीर से ये
हमारी जुड़े क्यूँ हैं ?
जब होती नहीं कोईभी मुराद पूरी तोदर पर ख़ुदा केइबादत को इंसाके सर झुके क्यूँ हैं ?
ख़ुदा ना ले इम्तिहान
कोई अब हमारा
तो कभी यूँ लगे कि
इम्तिहानों के सिलसिले
रुके तो रुके क्यूँ हैं ?
सुन ले ए ख़ुदा अबहमारी हर मुरादजब मुराद ना हो पूरीतो लगे कि अबख़ुदा कि फ़रियाद मेंये हाथ खड़े क्यूँ हैं ?
तेरी रहमत को ये ख़ुदा
हम खड़े क्यूँ हैं ?
पाने को हर सपना
आखिर हम अड़े क्यूँ हैं ?
- दीप्ति शर्मा
Comments
thanks deepti ...
अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,
रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा ,..
शायद यही है रचना की सार्थकता।
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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
बहुत खूबसूरत रचना है !
शब्द नहीं इस कविता की तारीफ को.
सादर
बटुए में , सपनों की रानी ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
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ब्लॉग पर लगा सफ़ेद कबूतर का चित्र बड़ा ही आकर्षक है.
bahut sundar
sunder srijan.
जीवन सन्दर्भों को आपने बखूबी शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है ..खुदा क्या है ? कैसा है ? यह जाने बगैर इंसान न जाने क्या- क्या उसके बारे में सोचता है ..लेकिन अगर जानकार उसके बारे में सोचता तो क्या बात होती ....उसका जीवन भी खुशियों से भरपूर होता और वह भी सबके लिए ख़ुशी का कारण बनता ....कविता की अंतिम पंक्तियाँ बहुत गहरा जीवन दर्शन हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं ....आपका आभार
खुदा से मांगना
खुद ही कर्म करने पाना है
इसमें इतना क्या चिल्लाना है
जब खुद ही सुनना है
तो सिर्फ हौले से
फुसफुसाना है
क्योंकि
मन के जीते जीत है
यही कर्म से बनाती प्रीत है
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
गहन भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।
हेल्लो दोस्तों आगामी..मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं!
bahut sunder
बहुत खूबसूरत रचना है !
http://iwillrocknow.blogspot.in/