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पिता

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पिता मेरी धमनियों में दौड़ता रक्त और तुम्हारी रिक्तता महसूस करती मैं, चेहरे की रंगत का तुमसा होना सुकून भर देता है मुझमें मैं हूँ पर तुमसी दिखती तो हूँ खैर हर खूबी तुम्हारी पा नहीं सकी पिता सहनशीलता तुम्हारी, गलतियों के बावजूद माफ़ करने की साथ चलने की सब जानते चुप रहने की मुझे नहीं मिली मैं मुँहफट हूँ कुछ,  तुमसी नहीं पर होना चाहती हूँ सहनशील तुम्हारे कर्तव्यों सी निष्ठ बन जाऊँ एक रोज पिता महसूस करती हूँ मुरझाए चेहरे के पीछे का दर्द तेज चिड़चिड़ाती रौशनी में काम करते हाथ कौन कहता है पिता मेहनती नहीं होते उनकी भी बिवाइयों में दरार नहीं होती है चेहरे पर झुर्रियां कलेजे में अनगिनत दर्द समेटे आँखों में आँसू छिपा प्यार का अथाह सागर होता है पिता तुम सागर हो आकाश हो रक्त हो बीज हो मुझमें हो बस और क्या चाहिए पिता जो मैं हू-ब-हू तुमसी हो जाऊँ । __ Deepti Sharma

कविता

प्रेम की चिट्ठियों ! तुम्हारे शब्द मेरे रक्त का वेग हैं जो मेरे भीतर जन्म-जन्मातर तक प्रवाहित होते रहेंगे मष्तिष्क की लकीरों से आँखों की झुर्रियों तक का सफर तय किया है सा...
रात के पलछिन और तुम्हारी याद वो बरसात की रात कोर भीग रहे, कुछ सूख रहे कँपते हाथ पर्दा हटा देख रहे चाँद जैसे दिख रहे तुम हँस रहे तुम गा रहे तुम उस धुन और मद्धम चाँदनी में खो रही ...
मैं चीख रही , मेरा लहू धधक रहा कहीं सड़क लाल तो कहीं बदरंग हो रही पर ना बिजली चमकी ना बरसात हुई ना आँधी आयी आयी तो उदासी बस नसीब में मेरे सुन ख़ुदा ! तू बहरा हो गया क्या ? -दीप्ति शर्...
नीले आसमां को देखती निगाहों की टकटकी, आँखों से रिसते पानी को सुबह की ओस से रात का तारा बना देती  है । @दीप्ति शर्मा
ये अमावस तारीखों में दर्ज हुयी बीत जाएगी, पर जो तुम मन में बसा लिए हो वो अमावस कभी क्या बीत पाएगी ? जवाब यही कि वक्त तो आने दो वक्त भी आया और गया पर अमावस ना खतम हुयी देखो मन तो तु...
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