रेल में खिडकी पर बैठी मैं आसमान ताक रही हूँ अलग ही छवियाँ दिख रही हैं हर बार और उनको समझने की कोशिश मैं हर बार करती कुछ जोड़ती, कुछ मिटाती अनवरत ताक रही हूँ आसमान के वर्तमान को ...
यादों की नदी,बातों का झरना सदियों से साथ बहते,झरते पर अब झरना सूख गया, नदी का वेग तीव्र हो गया, जिसमें कश्तियाँ भी डूब जाती हैं। (बस यूँ ही ,जिंदगी सच) # हिन्दी_ब्लॉगिंग