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Showing posts from July, 2017
रोटी सिकने के दौरान, चूल्हे में राख हुई लकड़ी का दर्द कोई नहीं समझता, बस दिखता है तो रोटी का स्वाद। ( #जिन्दगी का सच )

वो रेल वो आसमान और तुम

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रेल में खिडकी पर बैठी मैं आसमान ताक रही हूँ अलग ही छवियाँ दिख रही हैं हर बार और उनको समझने की कोशिश मैं हर बार करती कुछ जोड़ती, कुछ मिटाती अनवरत ताक रही हूँ आसमान के वर्तमान को ...
यादों की नदी,बातों का झरना सदियों से साथ बहते,झरते पर अब झरना सूख गया, नदी का वेग तीव्र हो गया, जिसमें कश्तियाँ भी डूब जाती हैं। (बस यूँ ही ,जिंदगी सच) # हिन्दी_ब्लॉगिंग