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Showing posts from July, 2014
मौन की भाषा मौन तक खुली आँखों.. खुले कानों से ना देखी जाती है ना सुनी जाती है ये भाषा.. मौन का आवरण पहन मौन ही में दफन हो जाती है.. © दीप्ति शर्मा
मर्यादाओं की कोख से जन्मी आभासी दुनिया के सच को मुखरित कर अहसास में बदलती एक अन्तहीन आवाज़ हूँ मैं । - दीप्ति शर्मा
मैं जी रही हूँ प्रेम अँगुली के पोरों में रंग भर दीवार पर चित्रों को उकेरती तुम्हारी छवि बनाती मैं रच रही हूँ प्रेम रंगों को घोलती गुलाबी, लाल,पीला हर कैनवास को रंगती तुम्ह...
जब मैं प्रेम लिखूंगी अपने हाथों से, सुई में धागा पिरो कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी तुम्हारे लिये मजबूती से कपड़े का एक एक रेशा जोडूंगी और जब उसे पहनने को बढ़ेगे तुम्हा...