रौशनी तो उतनी ही देती है
कि सारा जहाँ जगमगा दे
निरंतर जल हर चेहरे पर
खुशियों की नदियाँ बहा दे
फिर भी नकारी जाती है क्यों??
वो अधजली लौ
मूक बन हर विपत्ति सह
पराश्रयी बन ज...
यथार्थ के नीले गगन में बह रहें हैं भाव मेरे पीर परायी सुन सुनकर दिल में उपजे हैं घाव मेरे सुनो जरा क्या हुआ है देखो तुम बन गये हो हमराज मेरे मधुर गीत सुनकर तुम्हारे गूँज उठे ...