मन की बात

कई बार कई उम्मीदों को दिल में जगह पाते फिर टूटते हुए महसूस किया है | जिन्दगी मे सभी के साथ की जरुरत होती है , मैं भी सभी का साथ चाहती हूँ , पर पहल मुझे ही क्यों करनी पड़ती है ,फिर भी निराशा ही हाथ लगती है | निराशा को तोड़ता वो ख़ुशी का बादल दूर से आता दिखाई देता है , तो कुछ पल बाद वो भी ओझल हो जाता है | कितने रिश्ते बनते हैं तो ना जाने कितने बिछुड़ जाते हैं , फिर भी जिन्दगी की नाव हिलती डुलती चलती ही रहती है | कभी ख़ुशी तो कभी गम सहते हुए ये जिन्दगी बढती ही जाती है | कितनी ही निराशा हाथ लगती है पर उम्मीद दामन नही छोडती , एक उम्मीद के ख़तम होते ही एक नयी उम्मीद जगती है और उस को साकार करने का प्रयत्न होने लगता है, शायद ये तो पूरी हो जाये | उम्मीदों के भवर मे फंसी मैं एक उम्मीद पूरी होने होने की दरियाफ्त खुदा से करती हूँ , चाहे हो जाये कुछ , अपनों का साथ ना छूटे कभी , ना दुखे दिल किसी का अपने मेरे ना रूठे कभी | - दीप्ति शर्मा