चाहा था उन्हें

कसूर इतना था कि चाहा था उन्हें दिल में बसाया था उन्हें कि मुश्किल में साथ निभायेगें ऐसा साथी माना था उन्हें | राहों में मेरे साथ चले जो दुनिया से जुदा जाना था उन्हें बिताती हर लम्हा उनके साथ यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें किस तरह इन आँखों ने दिल कि सुन सदा के लिए उस खुदा से माँगा था उन्हें इसी तरह मैंने खामोश रह अपना बनाना चाहा था उन्हें | - दीप्ति शर्मा