समझो गर तुम

शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ | उलझी हूँ अपनी ही कुछ बातों से फिर भी तो जिन्दगी की मैं आस हूँ | क्यूँ ढूंढते हो मुझमें वो खुशियाँ मैं तो अपने जीवन से निराश हूँ | कोई अनजाना डर तो है दिल में वजह से उसकी ही मैं उदास हूँ | ज़िन्दगी जो अनजान है मुझसे रंजों से ज़िन्दगी की मैं हताश हूँ | - दीप्ति शर्मा