बादलों का अट्टहास वहाँ दूर आसमान में और मूसलाधार बारिश उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना मन को पुलकित कर रहा है मैं तुम्हारी दी लाल बनारसी साड़ी में प्रेम पहन रही हूँ कोमल, मखमली तुम्हारी गूँजती आवाज सा प्रेम बाँधा है पैरों में जिसकी आवाज़ तुम्हारी आवाज सी मधुर है मैं चल रही हूँ प्रेम में तुमसे मिलने को अब ये बारिश भी मुझे रोक ना पाएगी । © दीप्ति शर्मा
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