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Showing posts from December, 2014
अभी कुछ देरपहले मुझे आवाज़ आयी माँ , मैं यहाँ खुश हूँ सब  बैखोफ घूमते हैं कोई रोटी के लिये नहीं लड़ता धर्म के लिये नहीं लड़ता देश के लिये, उसकी सीमाओं के लिये नहीं लड़ता देखो ...

मुट्ठियाँ

बंद मुट्ठी के बीचों - बीच एकत्र किये स्मृतियों के चिन्ह कितने सुन्दर जान पड़ रहे हैं रात के चादर की स्याह रंग में डूबा हर एक अक्षर उन स्मृतियों का निकल रहा है मुट्ठी की ढीली ...