आखिर क्यूँ ?

मंज़िल तो हैं सीधी पर रास्ते ये सारे मुड़े क्यूँ हैं ? और तकदीर से ये हमारी जुड़े क्यूँ हैं ? जब होती नहीं कोई भी मुराद पूरी तो दर पर ख़ुदा के इबादत को इंसा के सर झुके क्यूँ हैं ? ख़ुदा ना ले इम्तिहान कोई अब हमारा तो कभी यूँ लगे कि इम्तिहानों के सिलसिले रुके तो रुके क्यूँ हैं ? सुन ले ए ख़ुदा अब हमारी हर मुराद जब मुराद ना हो पूरी तो लगे कि अब ख़ुदा कि फ़रियाद में ये हाथ खड़े क्यूँ हैं ? तेरी रहमत को ये ख़ुदा हम खड़े क्यूँ हैं ? पाने को हर सपना आखिर हम अड़े क्यूँ हैं ? - दीप्ति शर्मा