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Showing posts from April, 2011

जिन्दगी

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                             रात के अँधेरे साये में वो चिडचिडाती रौशनी कभी राह दिखाती है तो कभी बस आँखों में चुभती सी नजर आती है | यक़ीनन उस रौशनी के भीतर कोई ख्वाब , कोई उम्मीद है जो पल पल जलती है , पर उसी वेग से जगती भी जाती है | अथाह मन में उत्पन्न हर बात और विचित्र विडंबनाओ से जूझती जिन्दगी , क्या कोई उम्मीद पूरी कर पायेगी या इस रौशनी में इसकी चमक फीकी पड़ जाएगी| अद्रीश की तरह ऊँचाई का कोई मुकाम पा मेरी जिन्दगी  आज किसी तारे की तरह आकाश में  टिमटिमाएगी   या धूमिल हो कोई अकस बन रह जाएगी | हर एक चाह की तपिश  में तप, मेरी उम्मीद एक नयी राह दिखाएगी | कभी रौशनी में जिन्दगी पिलकायी जाएगी तो कभी दिल की गहराई से नापी जाएगी | साथ ले अपना अक्स बस चलती ही जाएगी | कभी आत्मा को झकझोर देगी तो कभी पत्थरो से टकरा उड़ती चली जाएगी | कभी अपनी  मुस्कान  में खुद  को जान  उस उम्मीद को पहचानने की आस  से उसका असर देखेगी  , तो कभी हर एहसास  के साये ...

ख्वाहिश की है |

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                               रौशन  जहाँ  की ही ख्वाहिश की है  मैंने अपने दिल की झूठे  बाज़ार  में सच्चाई के  साथ आजमाइश की है | मालूम है बस फरेब है यहाँ तो  फिर क्यों मैंने सपन भर आँखों में  अपने उसूलों की नुमाइश की है | जब मेरी जिन्दगी मेरी नहीं तो क्यों? ख्वाब ले जीने की गुंजाइश की है | कुछ जज्बात हैं मेरे इस दिल के  उनको समझ खुदा से मैंने बस  कुछ खुशियों की फरमाइश की है | मैनें तो बस कुछ लम्हों के लिए  रौशन जहाँ की ख्वाहिश की है | - दीप्ति शर्मा 

खता नहीं है |

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हर इन्सान में   ज़ज्बा है सच बोलने का फिर भी  वो झूठ से बचा नहीं है | पहना है हर चेहरे ने  एक नया चेहरा  और जीता है जिन्दगी   जब वो  बोझ समझ पर , जिन्दगी उसकी सजा नहीं है  वो झूठ से बचा नहीं है | खुद को पहचान वो  चलता है उन रास्तो पर  जहाँ खुद को जानने की उसकी कोई रजा नहीं है  वो झूठ से बचा नहीं है|  कहता तो है हर बात  बड़ी ही सच्चाई से पर  नजरें कहती है उसकी  कि उसके पास सच बोलने   की कोई वजह नहीं है  इसलिए ही तो वो  झूठ से बचा नहीं है | इसमें उसकी खता नहीं है | - दीप्ति  शर्मा