वो लम्हे हमें हैं अब याद आते , ना भूले हैं जानम ना भूल पाते , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो लहरों की कस्ती , वो फूलो की वादी , सितारों की झिलमिल , कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो चूड़ी की छनछन , वो पायल की खनखन , कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो कोयल की कूंह कूंह , वो झरने का झरना , रिमझिम सी बारिश, कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? फूलों की ख़ुशबू , महकता वो आँगन , मोहब्बत वो मेरी , कहाँ खो गयी , बताऊँ मैं कैसे तुझे ? - दीप्ति
कई बार कई उम्मीदों को दिल में जगह पाते फिर टूटते हुए महसूस किया है | जिन्दगी मे सभी के साथ की जरुरत होती है , मैं भी सभी का साथ चाहती हूँ , पर पहल मुझे ही क्यों करनी पड़ती है ,फिर भी निराशा ही हाथ लगती है | निराशा को तोड़ता वो ख़ुशी का बादल दूर से आता दिखाई देता है , तो कुछ पल बाद वो भी ओझल हो जाता है | कितने रिश्ते बनते हैं तो ना जाने कितने बिछुड़ जाते हैं , फिर भी जिन्दगी की नाव हिलती डुलती चलती ही रहती है | कभी ख़ुशी तो कभी गम सहते हुए ये जिन्दगी बढती ही जाती है | कितनी ही निराशा हाथ लगती है पर उम्मीद दामन नही छोडती , एक उम्मीद के ख़तम होते ही एक नयी उम्मीद जगती है और उस को साकार करने का प्रयत्न होने लगता है, शायद ये तो पूरी हो जाये | उम्मीदों के भवर मे फंसी मैं एक उम्मीद पूरी होने होने की दरियाफ्त खुदा से करती हूँ , चाहे हो जाये कुछ , अपनों का साथ ना छूटे कभी , ना दुखे दिल किसी का अपने मेरे ना रूठे कभी | - दीप्ति शर्मा
Comments
आभार
काफी उम्दा रचना....बधाई...
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"जिंदगी की पतंग"
आभार
हिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in/