
दिल पर तुम यूँ छा रही हो लगता है पास आ रही हो जुल्फ़ों के साये में छुप मुझे देख हाय यूँ इतरा रही हो कातिल मुस्कुराहट से तुम दिल की कली खिला रही हो रुख से अपने बलखा रही हो मुत्तसिर हो तुम मुझसे करीब आ मेरे दिल के क्यों मुझसे शरमा रही हो © दीप्ति शर्मा