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आजमाइश

आजमाना न था साथी जीवन की आजमाइश में  जिंदगी को तौलता तराजू सूरज बना, तुम कंधे पर बैठ उसके थामनें लगे दुनिया पकड़ने लगे पीलापन मुट्ठी बंद करते ही  अंधेरा हो गया पीलापन छूटा तो आजमाया तुमनें रिश्तों की गहराइयों को अंधेरा हुआ तो कंधा छूट गया परछाई का साथ मिला अब क्या सूरज के कंधे की सवारी  चश्में के लेंस में दिख रही तुम आजमाते रहे जिंदगी नाचती रही उजाला,अंधेरा हुआ आँखों का चश्मा जिंदगी की रौशनी ले डूब गया अंततः । -दीप्ति शर्मा