मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी
मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी आँखो से आँसू बहाऊँगी कभी तुम सुन सको तो सुन लेना स्याह रात की बिसरी बातें मैं तुम्हें बताऊँगी कभी मैं फासलों को मिटाऊँगी कभी मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी । खो गये हैं जो आँखों के सपन मैं वो सपन दिखाऊँगी कभी भूल गये हो जो तुम मुझे अब मैं याद अपनी दिलाऊँगी कभी मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी । जब तुम मेरे पास आ जाओगे तुम्हें अपना बनाऊँगी कभी जिंदगी के हर पन्ने को यूँ बेनकाब कर हर लफ़्ज़ में कुछ हालात बताऊँगी कभी मैं कोई किस्सा सुनाऊँगी कभी । © दीप्ति शर्मा