Posts

Showing posts from August, 2018

कविता

प्रेम की चिट्ठियों ! तुम्हारे शब्द मेरे रक्त का वेग हैं जो मेरे भीतर जन्म-जन्मातर तक प्रवाहित होते रहेंगे मष्तिष्क की लकीरों से आँखों की झुर्रियों तक का सफर तय किया है साथ में हमनें चिट्ठियां पुरानी नहीं होती वह अहसासों में बसती है वर्ष बीत जाते हैं बस बीते वर्षों में कुछ यादों ने कँपते हाथों में जान डाल दी देखो साँस चल रही बोल नहीं निकले तो क्या वेंटिलेटर पर हूँ चिट्ठियां थामें ये क्या! बँधी मुट्ठियाँ खुल गयी जीवन के अंतिम वक्त में चिट्ठियां छूट रही साँस टूट रही मेरी आँखें बंद हो रही तुम्हारे अक्षर धुल रहे अब लगता है, पुरानी हो जाएगीं चिट्ठियां सुनो! रोना मत मेरे जाने के बाद आखिरी चिट्ठी में तुम रोये थे कह गये थे रोना मत मैं रो नहीं रही समय अब मेरा नहीं रहा ना क्योंकि एक समय बीत जाने पर मिट जाता है भूतकाल और देखा जाता है भविष्य प्रेम चिट्ठियां यादें पुराने समय की बात हो चली अब तो डाकिया भी नहीं आता। @ दीप्ति शर्मा