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Showing posts from December, 2013

मुस्कुराहट

मैं भागता रहा मैं चीखता रहा सड़कों पर । साथ छूटता रहा मैं ढूंढ्ता रहा मोड़ो पर । दम घुटता रहा मैं चलता रहा शहर के हर कोनों पर। वो नहीं मिली शून्य में लुप्त हुई एक मासूम मुस्कुराहट ।   --   दीप्ति शर्मा

हाँ मैं दलित स्त्री हूँ

मैं तो  बरसों  की भाँती  आज भी यहीं हूँ तुम्हारे साथ पर तुम्हारी सोच नहीं बदली पत्थर तोडते मेरे हाथ पसीने से तर हुई देह और तुम्हारी काम दृष्टि नहीं बदली अब तक ये हाथों की रेखाएँ माथे पर पडी सलवटें बच्चों का पेट नहीं भर सकती मैं जानती हूँ और तुम भी कंकाल बन बिस्तर पर पड जाना मेरा यही चाहते हो तुम तुम कैसे नहीं सुन पाते सिसकियाँ भूखे पेट सोते बच्चों की मेरे भीतर मरती स्त्री की मैं  दलित हूँ हाँ मैं दलित स्त्री हूँ पर लाचार नहीं भर सकती हूँ पेट तुम्हारे  बिना अपना और बच्चों का अब मेरे घर चूल्हा भी जलेगा और रोटी भी पकेगी मेरे बच्चें भूखें नहीं सोयेंगे । तुम्हारे कंगूरे , तुम्हारी वासना तुम्हारी रोटियों , तुम्हारी निगाहों सब को छोड‌ आई हूँ मैं । -- दीप्ति शर्मा