क्यूँ दर्द समझ कर भी, नासमझ बना करते हैं| वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं और उसे देख के हँसते हैं | खलिश दबा सीने में तन्हा जीया करते हैं , तमन्ना नही कोई बस में जान के हर अश्क का अफ़सोस किया करते हैं, वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं और उसे देख के हँसते हैं| तस्कीरे बना हर इल्ज्म को अधिकार दिया करते हैं, दिल के जख्मो को जो नकार दिया करते हैं, इंसानों के आंसू को देखा भी नही करते हैं, वो पत्थर के रोने को झरना कहा करते हैं, और उसे देख के हँसते हैं | - दीप्ति शर्मा
कभी कोई तो होगा, जो सिर्फ मेरा होगा, जिसकी याद सताएगी| और मुझे तडपायेगी | कोई ऐसी घडी तो आएगी जब किसी की सांसे मेरे बिना थम जाएँगी | चाहेगा वो मुझे इतना कि धड़कने उसकी मेरी धड़कने बन जाएगी | - दीप्ति शर्मा ये कविता मैने १० क्लास मे लिखी थी आज आप सब के सामने लिखी है
आज मेरा सफ़र एक सीढ़ी चढ़ गया , बहुत कुछ पाया यहाँ रहकर मैंने , कितना कुछ सीखा तो आज इस अवसर पर बस यही कहना चाहती हूँ - आज ब्लॉग आकाश में असंख्य तारों के बीच चाँद सा प्यार दिया मुझे इस ब्लॉग परिवार ने | ...
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