विश्वास

नहीं होता  विश्वास उन बातों पे,
ना जाने दिल क्या चाहता है
तुझ पे विश्वास है खुद से ज्यादा
पर क्यों नही आज यकीं होता है
सोचा की ये यकीं मजबूत है
बुलंदियों पे है होसला  मेरा
तुझे चाहने का तुझे पाने का
पर अब मेरे इस दिल को
नही होता विश्वास उन बातों पे |
जिसकी हर बात पे आँखे मूंद
मैने विश्वास किया कभी
पर आज ये डगमगा रहा क्यों?
नहीं विश्वास होता उन ख्वाबो पे
जो इन आँखों ने देखे तुझे पाने के
दिल इतना कमजोर कैसे हो गया
विश्वास था जिस पे खुद से ज्यादा
क्यों आज उसकी बातों पे
कैसे भी विश्वास नहीं होता |

Comments

Atul Sharma said…
हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है। विश्वास बना रहे। विश्वासघात न हो। सुंदर कविता।

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