मेरी बातें

मैने अपनी इस छोटी सी अब तक की जिंदगी मे कई उतार चढाव  देखे है| कई मुश्किल दौर  से गुजरी हूँ . इनसे बस ये समझ आता है की ठोकरे तो हैं रस्ते पर |
 वो मंजिल ही क्या जिसमे मुश्किलें ना हो पर मुश्किलें जीतने  को हौसलें की जरुरत होती है और ये हौसला अपनों के साथ से आता है अपने तो हमेशा  ही साथ होते हैं पर फिर भी क्यों खुद को इतना तन्हा, अकेला महसूस करती हूँ ,आखिर क्या चाहती हूँ शायद खुद भी नहीं  जानती  की मेरा दिल क्या चाहता है क्या बात है दिल मे, कोई बात तो है जो मे समझ के भी समझना नही चाहती और खामोश रहकर अपने सवालो के जवाब तलाशती हूँ जो शायद ही पूरे हो, लगता है कहीं ये सवाल , सवाल ही ना रह जाये पर मन भी तो इक जगह स्थिर नही रहता इक सवाल हो तो कोई जवाब मिले पर इन सवालो से ही जिंदगी चलती है  उसे इक बहाना मिलता है आगे बढ़ने  का , कभी लगता है जिन्दगी भी तो अपनी नही है जिन्दगी के दुःख तो अपने है  पर सुख अपने नही वो पराये है और कभी जब मैं  अपनी भावनाओ को भी व्यक्त ना कर पाऊं तो क्या करूँ  ? किस से कहूँ ?
    सोचती हूँ  ये जिन्दगी इक आकाश की ही तरह तो है जिसमे भावना रूपी बादल  हमेशा छाये रहते हैं और सुख दुख रूपी वर्षा यूँ ही कभी भी हो जाती है इसका इतना विस्तार है इसको समझ पाना मुमकिन  तो नहीं, ये सागर की तरह गहरी है जितना भावो में जायेगे उतना डूबना है ये तो तय है मुझे लगता तो यही है आगे शायद मै इसे समझ पाऊं , इसके विस्तार को और इससे जुड़े अपने अस्तित्व को |
- दीप्ति शर्मा 

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