क्या ये ही जीवन है?

जब कभी मैं उदास होती हूँ |मन विचलित होता है इसी गहरी उदासी मे मन करता है कुछ लिखू पर क्या ये समझ मे नही आता |
जब अकेली हूँ या कोई दर्द हो कोई अपना रूठ  जाये बात ना करे | जिंदगी मे कई मोके एसे आते हैं जब किसी के साथ कि जरुरत होती है | कभी ऐसा  एहसास होता है सब साथ हैं पर अगले ही पल सब दूर हो जाते हैं | सभी को इस जिंदगी से कुछ ना कुछ शिकायत होती है कोई खुश नही , सभी के दिल में कुछ ना कुछ उलझाने , कई सवाल होते हैं | मेरे भी हैं | जीवन मे हमेशा तन्हाई क्यों मिलती है , हर वक़्त सिर्फ रुसवाई क्यों मिलती है जो मांगो वो पूरा नहीं होता , मन मे हरदम इक द्वन्द रहता है | जब दिल मे गम होते हैं तो अकेले बैठके रो भी नही सकते उसका भी कारण बताना पड़ता है , कही एकांत नहीं जहाँ बैठकर दिल को बहलाया जा सके | दिल कि बाते कहे तो किस से , कौन है सच्चा कौन है झूठा आखिर भरोसा किस पर करें जिस से बात करना चाहो वो कुछ दिन तो ठीक से बात करते हैं फिर ना जाने क्यूँ वो भी मुंह  मोड़ लेते हैं |जब अपना मतलब हो तो साथ रहते है ,मतलब ख़तम तो साथ भी ख़त्म | शायद मुझे ही बात करने का सलीका नही आता इसलिए तो साथी बिछुड़ जाते हैं एसे ही सवालो के बीच मैं हमेशा घुटती रहती हूँ | और सोचती हूँ  कि  क्या ये ही जीवन है?

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