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रोटी सिकने के दौरान, चूल्हे में राख हुई लकड़ी का दर्द कोई नहीं समझता, बस दिखता है तो रोटी का स्वाद। ( #जिन्दगी का सच )

वो रेल वो आसमान और तुम

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रेल में खिडकी पर बैठी मैं आसमान ताक रही हूँ अलग ही छवियाँ दिख रही हैं हर बार और उनको समझने की कोशिश मैं हर बार करती कुछ जोड़ती, कुछ मिटाती अनवरत ताक रही हूँ आसमान के वर्तमान को ...
यादों की नदी,बातों का झरना सदियों से साथ बहते,झरते पर अब झरना सूख गया, नदी का वेग तीव्र हो गया, जिसमें कश्तियाँ भी डूब जाती हैं। (बस यूँ ही ,जिंदगी सच) # हिन्दी_ब्लॉगिंग

शोषित कोख

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उस बारिश का रंग दिखा नहीं पर धरती भींग गयी बहुत रोई ! डूब गयी फसलें नयी कली , टहनी टूट लटक गयीं आकाश में बादल नहीं फिर भी बरसात हुई रंग दिखा नहीं कोई पर धरती कुछ सफेद ,कुछ लाल हुई ...
मन से निकली, मन तक पहुँची, वो अनकही बात, पर कैसे? आँखों से पगली, अब समझी ना !

आहट

घने कोहरे में बादलों की आहट तैरती यादों को बरसा रही है देखो महसूस करो किसी अपने के होने को तो आहटें संवाद करेंगी फिर ये मौन टूटेगा ही जब धरती भीग जायेगी तब ये बारिश नहीं कहल...

माँ

ये वो माँ है जिसके सारे बच्चे अच्छे पद व रुतबे, कोठी व कार वाले हैं ये वो माँ है जिसने दो रुपये की खादी की साड़ी पहन बच्चों को  अच्छे कपड़े पहनाये ये वो माँ है जो खुद भूखी रही पर बच...