मर्यादाओं की कोख से जन्मी
आभासी दुनिया के सच को
मुखरित कर अहसास में बदलती
एक अन्तहीन आवाज़ हूँ मैं ।
- दीप्ति शर्मा
उसने कहा था आज गुलाब का दिन है न गुलाब लेने का न देने का, बस गुलाब हो जाने का दिन है आज गुलाब का दिन है उसी दिन गुलाब सी तेरी सीरत से गुलाबी हो गयी मैं । - दीप्ति शर्मा
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