जब मैं प्रेम लिखूंगी
अपने हाथों से,
सुई में धागा पिरो
कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी
तुम्हारे लिये
मजबूती से कपड़े का
एक एक रेशा जोडूंगी
और जब उसे पहनने को बढ़ेगे
तुम्हारे हाथ
तब उस पल
उस अहसास से
मेरा प्रेम अमर हो जायेगा..
ⓒ दीप्ति शर्मा

Comments

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-07-2014) को ""क़ायम दुआ-सलाम रहे.." (चर्चा मंच-1686) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति......
Amrita Tanmay said…
अति सुन्दर ...
Unknown said…
वाह खूबसूरत रचना
Pratibha Verma said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Asha Joglekar said…
तब उस अहसास से मेरा प्रेम अमर हो जायेगा।
प्रेम तो वैसे भी अमर है ... बस एक और तार जुड़ जाएगा ...
dr.mahendrag said…
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना

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