बादलों का अट्टहास
वहाँ दूर आसमान में
और मूसलाधार बारिश
उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना
मन को पुलकित कर रहा है
मैं तुम्हारी दी
लाल बनारसी साड़ी में
प्रेम पहन रही हूँ
कोमल, मखमली
तुम्हारी गूँजती आवाज
सा प्रेम
बाँधा है पैरों में
जिसकी आवाज़
तुम्हारी आवाज सी मधुर है
मैं चल रही हूँ प्रेम में
तुमसे मिलने को
अब ये बारिश भी
मुझे रोक ना पाएगी ।
© दीप्ति शर्मा
डायरी के पन्नें
ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें प्यार यहीं है बस ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक #दीप्तिशर्मा
Comments
बहुत सुन्दर और भावुक रचना ----
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------