मैं भागता रहा
मैं चीखता रहा
सड़कों पर ।
साथ छूटता रहा
मैं ढूंढ्ता रहा
मोड़ो पर ।
दम घुटता रहा
मैं चलता रहा
शहर के हर
कोनों पर।
वो नहीं मिली
शून्य में लुप्त हुई
एक मासूम मुस्कुराहट ।
ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें प्यार यहीं है बस ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक #दीप्तिशर्मा
दिल में उठे हर इक सवाल की भाषा हूँ | सिमटे हुए अहसासों को जगाने की अभिलाषा हूँ | गहरा है हर जज्बात जज्बातों से पलते खवाब की परिभाषा हूँ | अकेली हूँ जहाँ में पर जगती हुई मैं आशा हूँ | - दीप्ति शर्मा
Comments
Bahut umda
aik muskurahat ki talash ki chatpatahat behtareen andaaz aur alfaaz me....
कवि अनिल उपहार