सिर्फ एक झूठ

आज डायरी के पन्नें पलटते हुये एक पुरानी कविता मिली....
लिजिये ये रही..
अगाध रिश्ता है सच झूठ का
सच का अस्तित्व ही
समाप्त हो जाता है
सिर्फ़ एक झूठ से ।
अपरम्पार महिमा है झूठ की
चेहरे से चेहरा छुप जाता है
इंसानों का ज़ज़्बा खो जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अगण्य होते हैं पहलू
हर एक झूठ के
रिश्ते भी तोले जाते हैं
सिर्फ एक झूठ से ।
अक्त हुयी कोई बात
उभर के ना आ पाये
यही उम्मीदें होती हैं
सिर्फ एक झूठ से ।
कहानी खूब सूनी होंगी
सूनी कभी झूठ की कहानी
कभी सच भी हार जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अनगिनत सवाल होते हैं
पर समाधान कोई नहीं
सवाल ठुकरा दिया जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अनकहे अल्फाजों में
जो कुछ बातें रह जाती हैं
उनका वजूद खो जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
© दीप्ति शर्मा

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