उसने कहा था आज गुलाब का दिन है न गुलाब लेने का न देने का, बस गुलाब हो जाने का दिन है आज गुलाब का दिन है उसी दिन गुलाब सी तेरी सीरत से गुलाबी हो गयी मैं । - दीप्ति शर्मा
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मैं
खता नहीं है |
हर इन्सान में ज़ज्बा है सच बोलने का फिर भी वो झूठ से बचा नहीं है | पहना है हर चेहरे ने एक नया चेहरा और जीता है जिन्दगी जब वो बोझ समझ पर , जिन्दगी उसकी सजा नहीं है वो झूठ से बचा नहीं है | खुद को पहचान वो चलता है उन रास्तो पर जहाँ खुद को जानने की उसकी कोई रजा नहीं है वो झूठ से बचा नहीं है| कहता तो है हर बात बड़ी ही सच्चाई से पर नजरें कहती है उसकी कि उसके पास सच बोलने की कोई वजह नहीं है इसलिए ही तो वो झूठ से बचा नहीं है | इसमें उसकी खता नहीं है | - दीप्ति शर्मा
Comments
(अरुन = arunsblog.in)
सादर
शुक्रिया दीप्ति बहन
मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।