मेरा साया


खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

मुग्ध हो कुछ राग अलापे ,
मगरूर हो मंजिल तलासे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सुर्खी लिए होंठो पर अपने ,
नये द्रष्टिकोण को अपनाया ,
प्रभात का ये उजियारा ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |

सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया |
 -दीप्ति शर्मा 

Comments

Anonymous said…
khubsurat bhav
kshama said…
सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जेसे रंग समाया |
Deeptee....bahut,bahut sundar rachana!
सहजभाव से ले संकल्प ,
कुछ क्षण में हैं मूक स्वर ,
उन स्वरों से उऋण,
जिजीविषा को थामे ,

आदरणीय दीप्ति जी
आपकी कविता में जीवन का वह पक्ष उभर कर सामने आया है जहाँ व्यक्ति का आध्यात्मिक भाव उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों की तरफ ले जाता है और कुछ संकल्पों के साथ उसकी जिजीविषा को जाग्रत करता है ...!
Unknown said…
सुर्खी लिए होंठों पर अपने..
नए दृष्टिकोण को अपनाया...
प्रभात का ये उजियारा..
खुद में गम मेरा साया..


बेहद गहरे और खूबसूरत भाव लिए हुए एक सुन्दर रचना....
बधाई...
Bharat Bhushan said…
खुद में गुम मेरा साया
हो कोई जेसे रंग समाया

ये पंक्तियाँ निज की तलाश को इंगित करती हैं. सुदंर अभिव्यक्ति.
दीप्ति जी,
खूबसूरत भाव लिए हुए एक सुन्दर रचना
बधाई...
खुद में गुम मेरा ही साया।

दीप्ति, बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति।
दीप्ति जी
नमस्कार !
खूबसूरत भाव लिए हुए एक सुन्दर रचना....
हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
Anonymous said…
सुन्दर....अपने ही साए से बातचीत सुखद रही....
बहुत खूबसूरत शब्द!

सादर
NSHAH said…
कभी खो जाता है वजूद अपना , तो कहीं
गम हो गया साया अपना , बेखुदी में , तस्सवुर में , जाने अनजाने क्या भाव आते है ,और बस.................अति सुन्दर अभिव्यक्ति है इस कविता में
Kunwar Kusumesh said…
बहुत सुन्दर रचना.
Unknown said…
खुद में गुम मेरा साया ,
हो कोई जैसे रंग समाया

very nice poem .......super like ##### thanks dipti ji
सुर्खी लिए होंठों पर अपने..
नए दृष्टिकोण को अपनाया...

yah pryog bha raha hai.
दो से तीन और फिर चार पंक्तियों की ओर बढ़ता सफर अद्भुत अभिव्‍यक्ति के स्‍वर उद्भूत कर रहा है। नई लय और नए भाव - नयेपन की दीप्ति को प्रतिभासित करती हुई तीव्र आकांक्षा खुद को निज साये के जरिए खोज रही है।
vikas chaudhary said…
khud se intni narajgi ?
achi baat nhi ?



smile!!!!!!!
SANSKRITJAGAT said…
bahut sundar
anupam bhav kramanata
Unknown said…
Dipti jee..
blog bahut shaandaar hai..
badhaai wa shubkaamnaye ...
aap ki lekhni bahut prabal hai...

http://amiajimkadarkht.blogspot.com/
Bahut hi shandaae aur behtarin kavita...........u have a really nice blog........:)



REGARDS
NAVEEN SOLANKI
http://drnaveenkumarsolanki.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत कविता
कल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल

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