तेरे लाज के घूँघट से
उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
द्वार पर खड़ी तू
बेतस बाट जोहती
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |
पनघट पे तेरा आना
भेष बदल गगरी छलकाना
छलक गयी गगरी तेरी
तेरे लाज के घूँघट से |
सजीले पंख सजाना
प्रतिध्वनित वेग से
झरकर गिर आयी
तेरे पाजेब की रुनझुन से |
रागों को त्याग
निष्प्राण तन में उज्जवल
उस अनछुई छुअन में
बरस गयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
- दीप्ति शर्मा
Comments
तेरे लाज के घूँघट से
द्वार पर खड़ी तू
बेतस बाट जोहती
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |bhaut hi khubsurat....
लज्जा के आभूषण का शानदार चित्रण किया है आपने...बहुत खूब ...
शुभकामनाएं एवं आभार....
पहली बार आया आपके ब्लाग पर लेकिन ऐसा लगा कि हमेशा आना पडेगा... सो फालोवर्स की सूची में शामिल हो गया.....
युवा पहल
दीप्ति जी आप बहुत सुन्दर लिखती हैं । अपनी कविताओं में आपने जीवह के सभी पहलुओं को छूने का प्रयास करके दिखा दिया है कि लेखन कला में आप काफी निखरी हुई हैं। मु। लगता है निराशा व अवसाद कहीं अन्दर ही अन्दर आपकी इस निपुणता को छू गया है । अन्तर्मन को कमजोर न पड़ने दें । एक अच्छी लेखिका होने पर आपको बधाई ।
--आदित्य बी0एस0