कैसी होगी वो मुलाकात |


जाने दिन होगा या रात 
कैसी होगी वो मुलाकात,
अंधियारे को भेदती 
मंद मंद चाँद की चांदनी 
और हल्की सी बरसात 
कुछ शरमीले से भाव 
कुछ तेरी कुछ मेरी बात 
अनजाने से वो हालत 
कैसी होगी वो मुलाकात |

आलम-ए-इश्क वजह 
बन तमन्नाओं से 
सराबोर निगाहों के साये 
में हुयी तमाम बात 
तकते हुए नूर को तेरे
ठहरी हुयी सी आवाज 
अनजाने से वो हालात
कैसी होगी वो मुलाकात | 

Comments

Anonymous said…
bahut sunder
vandana gupta said…
सुन्दर भाव
kshama said…
Bahut hee khoobsoorat rachana!
कुछ शरमीले से भाव कुछ तेरी कुछ मेरी बात अनजाने से वो हालत कैसी होगी वो मुलाकात |

बेहतर की आशा तो की जा सकती है ....भावों को उंडेल दिया हो जैसे आपने ...!
सत्य स्वप्न से सुन्दर हो आपका।
सुंदर रचना।
गहरे भाव.....
बहुत ही सुन्दर रचना.............एक ख़ास एहसास से भरपूर रचना..............बधाई दीप्ति !!!
Anonymous said…
lovely poem..
kaisi hogi vo mualakat
kya chand aayega us din
ya hamari mulakat se roshan hoga aasman
kaisi hogi vo mualakt





आदरणीया दीप्ति जी
सस्नेह अभिवादन !

मन के भावों की सुंदर प्रस्तुति -
जाने दिन होगा या रात
कैसी होगी वो मुलाकात,
अंधियारे को भेदती
मंद मंद चाँद की चांदनी
और हल्की सी बरसात
कुछ शरमीले से भाव
कुछ तेरी कुछ मेरी बात
अनजाने से वो हालात
कैसी होगी वो मुलाकात


अच्छा लिखा है दीप्ति जी
… लेकिन कई बार मुलाकात हो जाने पर भी कसक रह जाती है । मुलाहिजा फ़रमाएं-
तुझसे मिल कर भी दिल को न चैन आ सका
तुझसे मिलना भी इक हादसा हो गया
तू नहीं थी तो फ़ुर्क़त का ग़म था मुझे
अब ये ग़म है कि ग़म बेमजा हो गया

:)


मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Sunil Kumar said…
पहली मुलाकात की बेकरारी ऐसी ही होती है ........
सदा said…
बहुत बढि़या।
सुन्दर भाव... सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
बहुत सुन्दर ....

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