tag:blogger.com,1999:blog-20329676771552934852024-03-06T07:42:08.411+05:30स्पर्श भावनाओं का deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.comBlogger210125tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-54813468010646376162022-03-28T16:53:00.001+05:302022-03-28T16:53:07.110+05:30आजमाइश<div>आजमाना न था साथी</div><div>जीवन की आजमाइश में</div><div> जिंदगी को तौलता तराजू</div><div>सूरज बना,</div><div><br></div><div>तुम कंधे पर बैठ उसके</div><div>थामनें लगे दुनिया</div><div>पकड़ने लगे पीलापन</div><div><br></div><div>मुट्ठी बंद करते ही </div><div>अंधेरा हो गया</div><div><br></div><div>पीलापन छूटा तो</div><div>आजमाया तुमनें</div><div>रिश्तों की गहराइयों को</div><div><br></div><div>अंधेरा हुआ तो</div><div>कंधा छूट गया</div><div>परछाई का साथ मिला</div><div><br></div><div>अब क्या</div><div>सूरज के कंधे की सवारी </div><div>चश्में के लेंस में दिख रही</div><div><br></div><div>तुम आजमाते रहे</div><div>जिंदगी नाचती रही</div><div>उजाला,अंधेरा हुआ</div><div><br></div><div>आँखों का चश्मा</div><div>जिंदगी की रौशनी ले</div><div>डूब गया अंततः ।</div><div><br></div><div>-दीप्ति शर्मा</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-32480259488247099532020-09-16T23:06:00.001+05:302020-09-16T23:06:35.011+05:30बस यूँ ही <div>डूब रहा सूरज वहाँ पीछे ओट लिए,</div><div>और मैं एकटक देखती रही कि जैसे</div><div> तुम छुप गये हो कहीं पीछे,</div><div>लाल लालिमा में कैद </div><div>मुस्कुराते से।</div><div>#बसयूँही </div><div>#दीप्तिशर्मा</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-48488707417326349042020-05-13T00:06:00.001+05:302020-05-13T00:06:16.117+05:30डायरी के पन्नें किस्त दूसरी<div>ताजमहल की यादें कड़ी नं दो</div><div>ताजमहल के बारे में लोग सुनते हैं फिर सहसा खींचें आते हैं। ताजमहल के शहर की एक लड़की मुँह पर कपड़ा बाँधें, रेलवे स्टेशन पर किसी का इंतजार कर रही है,हर बार गाडियों के हार्न पर वह चौंक नजरें इधर-उधर घुमा रही, किसी का इंतजार था बेसब्र थी, कई गाड़ियां, चेहरे आये गये हुए और उसकी नजरें एकटक जमा थी पटरियों पर कि जैसे अचानक कोई ट्रेन आयेगी और ....... सोचते हुए एक और हार्न बजा, गाड़ी रूकी, गाड़ी रूकने के साथ धड़कनें बढ़ने लगी, वो शक्स दिख गया और आँखें झुक गयी तभी याद आया चेहरा ढँका है सामने वाला पहचानेगा कैसे?</div><div>हाथ हिलाते हुए उसका नाम लेकर बुलाया और ये मुलाकात स्टेशन पर।</div><div>सामने बैठे दो शक्स और बात कोई कर नहीं रहा, लड़की बोली ताजमहल चलें?</div><div>अब इस बार ताजमहल और ऊँट की सवारी, ऊँट का हिलना दोनों का मिलना।</div><div>दोनों बाहों में बाहें डाल घूमते रहे,मुलाकातें कितना रोमांच दे जाती हैं न खासतौर पर जब आप अनजान हों और एक दूसरे को समझ रहें हो,समझ-बूझकर स्टेशन आकर फिर घर लौट आयी।</div><div>ताजमहल के शहर की लड़की जिसकी ये मुलाकात भी यादगार रही।</div><div>ताजमहल के साथ उसके किस्से भी खूबसूरत होते हैं।</div><div>#दीप्तिशर्मा</div><div>#डायरीकेपन्नें</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-5173346485159274892020-05-12T16:19:00.000+05:302020-05-12T16:19:02.417+05:30यादों का पिटारा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSeRtGuPr6ziivqw_lkrymkNsB_AQYhWZtTgLn7L80HARi4KHNOLpa90T0nRPUJt7W_eX9b3lhivx891CVjMooVHaWbmsv9qewZz1t88G91893F1VdOpBcE65eHEHVsG_JmQKJQ6nsYQk/s1600/1589280537613574-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSeRtGuPr6ziivqw_lkrymkNsB_AQYhWZtTgLn7L80HARi4KHNOLpa90T0nRPUJt7W_eX9b3lhivx891CVjMooVHaWbmsv9qewZz1t88G91893F1VdOpBcE65eHEHVsG_JmQKJQ6nsYQk/s1600/1589280537613574-0.png" width="400">
</a>
</div><div>हमशक्ल होते हैं क्या? मैं नहीं मानती थी पर एक बार हुआ यूँ कि मैंने पाँचवीं के पेपर दिये,कॉलोनी के सारे बच्चे छटवीं में नये स्कूल जा रहे थे, उस समय जीजीआईसी में बहुत से बच्चे गये, मेरा भी मन था पर पापा ने मेरा दाखिला दयानंद विद्या मंदिर पिथौरागढ़ में कराया। मन में उत्साह था, नया स्कूल नये लोग पर जब पहले दिन स्कूल गयी तो सब मुझे सरस्वती बुला रहे थे और कह रहे थे कि मेरे बाल बड़े थे छोटे क्यों कराये?</div><div>मैं हैरान! परेशान</div><div>बाल तो मेरे ऐसे ही थे!</div><div>मैंने बताया मैं सरस्वती नहीं दीप्ति हूँ पर कोई माने ना, कागज दिखाने पड़े, तब पता चला कि मेरी हमशक्ल सरस्वती इसी साल स्कूल छोड़ गयी और मैं आ गयी।</div><div>उस स्कूल में एक साल पढ़ी पर यादों का पिटारा है।</div><div>तस्वीर उन्हीं दिनों की है बीच में हरी चुनरी वाली मैं दीप्ति, सरस्वती नहीं 😃</div><div>#यादोंकापिटारा </div><div>#पिथौरागढ़ </div><div>अगली किस्त फिर कभी</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-389204091335698812020-05-11T20:21:00.001+05:302020-05-11T20:21:30.013+05:30परवरिश<div>बच्चों को हम क्या सीखा रहे हैं सिर्फ किताबें रटाने से या उन्हें बोलना सीखाने से काम नहीं चलेगा उन्हें जिम्मेदार बनना होगा सिर्फ रेस में भागना ही जरूरी नहीं है जरूरी ये है भाग क्यों रहें हैं और किस तरह, कहीं जाने अनजाने हम कुछ ऐसा तो नहीं कर रहे जिससे मासूम मन में वो बातें घर कर जायें फिर उन्हीं बातों का आधार बने उसका जीवन ,जीवन बचाना है तो सोचना होगा</div><div>रंग भेद की बात इन मासूम कोंपल के मन में आ कैसे जाती है ये समझिए हुआ यूँ कि मदर्स डे की पहली रात जब गुन्नू मेरे लिए ड्राइंग बना रहा था तो मेरे पास आकर बोला मम्मा इतना बन गया है अब कलर करना है तो कहने लगा आपको यलो कलर करूँगा और गुन्नू को ब्लैक सुनकर मेरा माथा ठनका ब्लैक क्यों बेटा आप कृष्णा के कलर के हो न सुंदर तो वो तपाक से बोलता है मम्मा मेरा दोस्त मुझे ब्लैक फेयरी बोलता है, गुन्नू को तो समझा दिया पर सवाल ये कि जो बच्चा ऐसा बोल रहा है उसके घर का माहौल कैसा होगा क्या परवरिश मिल रही है उसे</div><div>ये छोटा सा लगने वाला बहुत बड़ा सवाल है कि ऐसे ही बच्चों के मन में धीरे धीरे कुंठाएँ विकराल रूप ले लेती है ये खुद को सबसे श्रेष्ठ मानने लगते हैं जैसा कि घर में माहौल वैसा दिया जाता है</div><div>रोक दीजिए अभी भी बच्चों को तो कम से कम इन सबमें शामिल न ही कीजिए वो कोमल हैं मासूम हैं मुरझा जायेंगे कठोर हो जायेंगे उनकी कोमलता मत छीनिये न ।</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-32392215275491388352020-05-05T12:14:00.001+05:302020-05-05T12:14:47.089+05:30डायरी के पन्नें <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM6fMaSIT1nce5CifBUsGxk-A0TpisfBYYWvYrRYBIxzbBlD6OvYNNSQwSoXfDbIoyxuhPbGs3LTvgp7CcC9zwrgY31i3r_h6mmjx9HFb5TUoW9c8MTtswFdU6DmdQwEploUVX7H629qw/s1600/1588661080672582-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM6fMaSIT1nce5CifBUsGxk-A0TpisfBYYWvYrRYBIxzbBlD6OvYNNSQwSoXfDbIoyxuhPbGs3LTvgp7CcC9zwrgY31i3r_h6mmjx9HFb5TUoW9c8MTtswFdU6DmdQwEploUVX7H629qw/s1600/1588661080672582-0.png" width="400">
</a>
</div><div>ये उन दिनों की बात है जब हम मिले पहली दफा स्टेशनपर अनजान से , दूसरी दफा ताजमहल</div><div>कितनी मन्नतों के बाद ये दिन आया था तुम और ताजमहल पास ही ,सपना लग रहा जैसे ,ताजमहल देखना बचपन की तमन्ना और तुम्हारा मिलना तो लगता हर तमन्ना पूरी हो गयी</div><div>तुम्हारी बाहों के आगोश में यमुना के पानी में पैर डुबो महसूस करती रही तुम्हें </div><div>प्यार यहीं है बस </div><div>ताजमहल की यादें कड़ी नंबर एक</div><div>#दीप्तिशर्मा</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-24994694304897081262020-04-15T11:51:00.001+05:302020-04-15T12:02:32.877+05:30अतीत<div>उसने पूछा-</div><div>"कभी ऐसा हुआ ?</div><div>तुम चुप रही हो और </div><div>फिर भी आ रही हो आवाज</div><div>विस्मृत हो रहे हों</div><div>तुम्हारे कान </div><div>तुम्हारी आँखें</div><div>खुद तुम भी</div><div>कि दिन ,दिन है</div><div>और रात ,रात है ही"</div><div>मैंने कहा-</div><div>"अजीब है न </div><div>कौंधती बिजली भी नहीं डराती</div><div>जब किसी की खामोशी डरा जाती है</div><div>उन खामोशी की आवाजें</div><div>मेरे भीतर का रक्त उबाल रही हैं "</div><div>उसने मुस्कुराते हुए</div><div>किसी की खामोशी नहीं वहम डराते हैं</div><div>मैं चुप हूँ रो रही कि हाँ</div><div>वहम या हकीकत पुरानी</div><div>उसकी टीस डराती है</div><div>दिन रात नहीं देखती </div><div>ये सच है</div><div>वो मेरे भीतर डर की आवाजें</div><div>चीख रहीं हैं</div><div>सुनो </div><div>अरे सुनो</div><div>तुमने सुना न !</div><div>- दीप्ति शर्मा</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-13105050854291015882020-03-30T16:27:00.001+05:302020-03-30T16:27:56.128+05:30बच्चों की बातें<div>शिवम (गुन्नू के पापा) गुन्नू से बात करते हुए</div><div>चलो बेटा " हाथी मेरे साथी " मूवी देखते हैं</div><div>गुन्नू- नहीं पापा ये नहीं</div><div>शिवम - फिर कौन सी</div><div>गुन्नू- चप्पल चोर देखते हैं 😎</div><div>शिवम- ये कौन सी मूवी है 🤔</div><div>गुन्नू - नहीं है</div><div>ओह ! चलो हम बना लेते हैं</div><div>मैं चप्पल चुराता हूँ आप ढूँढ़ो 😇</div><div>अब पापा का रियेक्शन 🙄🙄</div><div>और मेरा 🤣🤣</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-1157265619051553712020-02-07T15:08:00.001+05:302020-02-07T15:08:08.223+05:30<div>उसने कहा था</div><div>आज गुलाब का दिन है</div><div>न गुलाब लेने का </div><div>न देने का, </div><div>बस गुलाब हो जाने का दिन है</div><div>आज गुलाब का दिन है</div><div>उसी दिन गुलाब सी तेरी सीरत से</div><div>गुलाबी हो गयी मैं ।</div><div>- दीप्ति शर्मा</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-12723208772318096372020-01-27T19:32:00.001+05:302020-01-27T19:32:58.829+05:30<div>सरहदों के मौसम एक से </div><div>बस अलग था तो </div><div>मार दिया जाना पंछियों का</div><div>जो उड़कर उस पार हो लिए</div><div><br></div><div>रंगनी थी दिवार</div><div>कि जब तक खून लाल ना हो</div><div>जमीन भींग ना जाए</div><div>और हम सोते रहें</div><div><br></div><div>देर रात जश्न मनाते </div><div>शराब पी बे- सूद</div><div>अपनी औरतों को मारते</div><div>हम अलग नहीं</div><div><br></div><div>चौराहे </div><div>अलग रंग के</div><div>अलग शहरों के </div><div>घटना एक सी</div><div>रेप कर दिया</div><div>चाकू मार दिया</div><div>हम एक हैं अलग नहीं</div><div><br></div><div>ये खून हरा है</div><div>खून बहेगा तबतक</div><div>जबतक वो लाल नहीं होता</div><div>मरेगी औरतें, मारेगा आदमी</div><div>होंगे रेप</div><div>चलेंगे चाकू</div><div><br></div><div>आदमी सोच रहा</div><div>हम हरे खून वाले </div><div>जब बहेंगे </div><div>तब बहेगा जहर </div><div>तो खून लाल कर दो देवता</div><div>या पानी बना बहा दो सब</div><div>आ जाने दो प्रलय</div><div>अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया</div><div><br></div><div>हम हो पायेंगे इंसान</div><div>तब ये खून लाल होगा</div><div><br></div><div>Deepti Sharma</div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-53800532155201784282019-10-14T22:14:00.001+05:302019-10-14T22:14:11.599+05:30संस्मरण<p dir="ltr">बच्चे कितनी जल्दी समझदार हो जाते हैं, अब लगता है सब समझने लगा है क्या अच्छा क्या बुरा<br>
बहुत बातें हैं धीरे धीरे एक एक कर बताऊँगी<br>
आज एक किस्सा <br>
पुराना है एक साल पर बताना जरूरी लगा<br>
जे.एन.यू के प्रेसिडेंट चुनाव का माहौल था गुन्नू की उम्र ढाई साल <br>
हम रास्ते पर चल रहे हैं जनाब के प्रश्न खतम नहीं हो रहे कभी झिंगुर की आवाज तो कभी कोई पेड़ उसके आश्चर्य का कारण बन रहे तभी रास्ते पर एक बड़ा कॉकरोच अधमरा पड़ा हुआ था उसे देख गुन्नू बैचेन हो गया बोला मम्मा इसे क्या हुआ है<br>
मैं बोली लग रहा कोई इस पर पैर रखकर चला गया है ये घायल है गुन्नू को घायल होने का मतलब समझ में आता था शायद उस समय तभी तपाक से बोला इसे घर ले चलो, डॉक्टर के पास लेकर जायेंगे , बहुत समझाया पर नहीं माना <br>
वहाँ कुछ लोग खड़े ये सब देख रहे हँस रहे कि बच्चा कैसी जिद्द किये जा रहा है उनमें से कुछ ने समझाया पर ये लड़का नहीं माना <br>
तब एक लड़की आयी मैं उसको नहीं जानती थी उसने बस इतना कहा छोटू आप जाओ इसको मैं ले जाती हूँ डॉक्टर के पास <br>
तब जाकर छोटे नवाब माने और घूम फिर कर घर वापस आये....<br>
शेष फिर ......</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-3949879683107908952019-09-28T20:35:00.001+05:302019-09-28T20:35:13.301+05:30बदलते रंगों में<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तुम्हारे चाहने से रंग नहीं बदलते<br>
प्रेम नहीं बदलते</p>
<p dir="ltr">खून लाल ही रहता है <br>
और आसमान नीला</p>
<p dir="ltr">जैसे प्रेम बढ़ता है <br>
खून अधिक लाल हो जाता<br>
आसमान अधिक नीला</p>
<p dir="ltr">बढ़ते रंगों में<br>
हम-तुम एक से हो गये<br>
देखो !<br>
प्रेम हमारा इंद्रधनुष बन रहा<br>
बरस रहा<br>
अब धरती सुनहरी हो चली है ।</p>
<p dir="ltr">@दीप्ति शर्मा</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-92047889586138628392019-09-18T20:46:00.001+05:302019-09-18T20:46:17.844+05:30<p dir="ltr">दहलीज जो पार की,<br>
मुड़कर नहीं देखा पीछे<br>
पर दहलीज ताकती रही <br>
अपनों को तलाशती रही<br>
कि कोई आएगा अपना लौटकर<br>
इस पार<br>
#दहलीज का दर्द<br>
#बसयूँही<br>
#दीप्तिशर्मा</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-88931204470843384252018-12-01T18:12:00.001+05:302018-12-05T01:34:00.710+05:30पिता<p dir="ltr">पिता<br>
मेरी धमनियों में दौड़ता रक्त<br>
और तुम्हारी रिक्तता<br>
महसूस करती मैं,<br>
चेहरे की रंगत का तुमसा होना<br>
सुकून भर देता है मुझमें<br>
मैं हूँ पर तुमसी<br>
दिखती तो हूँ खैर<br>
हर खूबी तुम्हारी पा नहीं सकी<br>
पिता<br>
सहनशीलता तुम्हारी,<br>
गलतियों के बावजूद माफ़ करने की<br>
साथ चलने की<br>
सब जानते चुप रहने की <br>
मुझे नहीं मिली <br>
मैं मुँहफट हूँ कुछ, तुमसी नहीं<br>
पर होना चाहती हूँ<br>
सहनशील <br>
तुम्हारे कर्तव्यों सी निष्ठ बन जाऊँ एक रोज<br>
पिता<br>
महसूस करती हूँ <br>
मुरझाए चेहरे के पीछे का दर्द<br>
तेज चिड़चिड़ाती रौशनी में काम करते हाथ<br>
कौन कहता है पिता मेहनती नहीं होते<br>
उनकी भी बिवाइयों में दरार नहीं होती है<br>
चेहरे पर झुर्रियां <br>
कलेजे में अनगिनत दर्द समेटे<br>
आँखों में आँसू छिपा<br>
प्यार का अथाह सागर<br>
होता है पिता<br>
तुम <br>
सागर हो<br>
आकाश हो<br>
रक्त हो<br>
बीज हो <br>
मुझमें हो <br>
बस और क्या चाहिए<br>
पिता<br>
जो मैं हू-ब-हू तुमसी हो जाऊँ ।</p>
<p dir="ltr">__ Deepti Sharma</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPPlmmxIptRGEPbygi6k6Nhfe0MkljwUi3qQBjE1YhDC_9GfVF8I5pyXe7KgpCxDltjmRAPsUEIFjhToZ9aOU9kNlrjrAmdOz5cGHTT1QXxhL1V60bdEFbW9okCsyLT7v3IE0rBT1Hrqk/s1600/PicsArt_12-01-12.05.57.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPPlmmxIptRGEPbygi6k6Nhfe0MkljwUi3qQBjE1YhDC_9GfVF8I5pyXe7KgpCxDltjmRAPsUEIFjhToZ9aOU9kNlrjrAmdOz5cGHTT1QXxhL1V60bdEFbW9okCsyLT7v3IE0rBT1Hrqk/s640/PicsArt_12-01-12.05.57.jpg"> </a> </div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-47158553455627035282018-08-14T19:47:00.001+05:302018-08-14T19:47:43.103+05:30कविता<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">प्रेम की चिट्ठियों !<br>
तुम्हारे शब्द<br>
मेरे रक्त का वेग हैं<br>
जो मेरे भीतर<br>
जन्म-जन्मातर तक <br>
प्रवाहित होते रहेंगे<br>
मष्तिष्क की लकीरों से<br>
आँखों की झुर्रियों तक का सफर<br>
तय किया है साथ में हमनें</p>
<p dir="ltr">चिट्ठियां पुरानी नहीं होती<br>
वह अहसासों में बसती है<br>
वर्ष बीत जाते हैं बस<br>
बीते वर्षों में<br>
कुछ यादों ने<br>
कँपते हाथों में<br>
जान डाल दी<br>
देखो साँस चल रही<br>
बोल नहीं निकले तो क्या<br>
वेंटिलेटर पर हूँ<br>
चिट्ठियां थामें</p>
<p dir="ltr">ये क्या!<br>
बँधी मुट्ठियाँ खुल गयी<br>
जीवन के अंतिम वक्त में<br>
चिट्ठियां छूट रही <br>
साँस टूट रही<br>
मेरी आँखें बंद हो रही<br>
तुम्हारे अक्षर धुल रहे<br>
अब लगता है, पुरानी हो जाएगीं चिट्ठियां<br>
सुनो! रोना मत<br>
मेरे जाने के बाद <br>
आखिरी चिट्ठी में <br>
तुम रोये थे<br>
कह गये थे रोना मत<br>
मैं रो नहीं रही<br>
समय अब मेरा नहीं रहा ना<br>
क्योंकि एक समय बीत जाने पर <br>
मिट जाता है भूतकाल<br>
और देखा जाता है भविष्य<br>
प्रेम<br>
चिट्ठियां<br>
यादें<br>
पुराने समय की बात हो चली <br>
अब तो डाकिया भी नहीं आता।<br>
@ दीप्ति शर्मा</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-68016359811649539102018-07-21T23:57:00.001+05:302018-07-21T23:57:48.711+05:30<p dir="ltr">रात के पलछिन और तुम्हारी याद<br>
वो बरसात की रात <br>
कोर भीग रहे, कुछ सूख रहे<br>
कँपते हाथ पर्दा हटा <br>
देख रहे चाँद<br>
जैसे दिख रहे तुम<br>
हँस रहे तुम<br>
गा रहे तुम<br>
उस धुन और मद्धम चाँदनी में<br>
खो रही मैं<br>
रो रही मैं<br>
रात सवेरा लाती है<br>
तुमको नहीं लाती<br>
आँसू लाती <br>
नींदें लाती <br>
सपने लाती<br>
मैं दिन रात के फेर में <br>
फँस रही हूँ<br>
जकड़ रही हूँ<br>
कुछ है जो बाँध रहा<br>
ये रात ढल नहीं रही <br>
और तुम हो कि आते नहीं<br>
मुस्कुराते हो बस दूर खड़े<br>
सुन लो <br>
मुस्कुरा लो<br>
जितना मुस्कुराओगे<br>
मैं उतना रोऊँगी<br>
नहीं बीतने दूँगी रात<br>
मैं भी रात के शून्य में <br>
विलीन हो<br>
मौन हो जाऊँगी<br>
सुन लो तुम।</p>
<p dir="ltr"> @दीप्ति शर्मा<br>
</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-67559322774052959812018-04-28T15:06:00.001+05:302018-04-28T15:06:32.846+05:30<p dir="ltr">मैं चीख रही ,<br>
मेरा लहू धधक रहा<br>
कहीं सड़क लाल तो<br>
कहीं बदरंग हो रही<br>
पर ना बिजली चमकी<br>
ना बरसात हुई<br>
ना आँधी आयी<br>
आयी तो उदासी<br>
बस नसीब में मेरे<br>
सुन ख़ुदा !<br>
तू बहरा हो गया क्या ? <br>
-दीप्ति शर्मा</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-48085228804705586292018-03-15T15:56:00.001+05:302018-03-15T15:56:28.484+05:30<p dir="ltr">नीले आसमां को देखती <br>
निगाहों की टकटकी,<br>
आँखों से रिसते पानी को<br>
सुबह की ओस से <br>
रात का तारा बना देती है ।<br>
@दीप्ति शर्मा<br>
</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-83405168343260244572018-02-15T22:52:00.001+05:302018-02-15T22:52:31.052+05:30<p dir="ltr">ये अमावस तारीखों में दर्ज हुयी बीत जाएगी,<br>
पर जो तुम मन में बसा लिए हो<br>
वो अमावस कभी क्या बीत पाएगी ?<br>
जवाब यही कि वक्त तो आने दो<br>
वक्त भी आया और गया<br>
पर अमावस ना खतम हुयी<br>
देखो मन तो तुम्हारा<br>
अँधेरी सुरंग हुआ जा रहा<br>
बदबू साँस रोक रही<br>
कैसे जी रहे हो तुम?<br>
यहाँ मेरा दम घुट रहा।<br>
#अमावसकीरात और<br>
#तुमकोसमझतीदीप्ति</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-12155584640950848012018-01-26T02:05:00.001+05:302018-01-26T02:05:24.755+05:30<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV7tCpGF4JdWdZMHPgFFbZXaNIQgH_rgTmB5ggZJL16EjD4Yg3X7sIwa7E_f4QFIemUO2xGF4rBPaKuD9IopXaUuduDvgudogtE76xFAspqGtHC_K1IPPDNQw56gjpRlCXO5nV3wlXukM/s1600/WG6k9494.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV7tCpGF4JdWdZMHPgFFbZXaNIQgH_rgTmB5ggZJL16EjD4Yg3X7sIwa7E_f4QFIemUO2xGF4rBPaKuD9IopXaUuduDvgudogtE76xFAspqGtHC_K1IPPDNQw56gjpRlCXO5nV3wlXukM/s640/WG6k9494.jpg"> </a> </div>deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-30383545813697116822017-12-28T17:18:00.001+05:302017-12-28T17:18:28.960+05:30कुछ नोट्स<p dir="ltr">आज का दिन और गुन्नू<br>
सुबह सुबह <br>
मैं- गुन्नू गुड मॉर्निंग उठ जाओ<br>
गुन्नू- मम्मी सोई सोई प्लीज<br>
मैं - किसने बताया कि प्लीज भी बोलना है <br>
'गुन्नू हँसते हुए दूसरी ओर मुँह कर लेट गया'<br>
थोड़ी देर बाद<br>
मुझे सफाई करते ध्यान से देख रहा, 'मैंने झाडने को बिस्तर झड़ाया है'<br>
गुन्नू- हटो <br>
मैं - कहाँ जाऊँ?<br>
गुन्नू- बाये ( बाहर जाओ)🙄<br>
मैं - अब क्या करोगे ?<br>
गुन्नू- बाबू सोई सोई<br>
मैं अपना माथा पकडती उसे कहानी सुनाती हूँ,<br>
तभी अचानक बीच में उसकी कहानी शुरू<br>
गुन्नू- मम्मी कॉउ मोओओओओ बाये हाथी , आओ माऊं बाये , गोट मेएएएए<br>
कहानी के बीच में नमकीन की याद आ गयी<br>
गुन्नू- मम्मी ई हाथे ( नमकीन हाथ में दो)<br>
नमकीन लेकर थेंक ऊ बोल आगे बढ़ गये,<br>
मैं खडी देख रही हूँ फिलहाल काम बंद है , खाना बनाना है<br>
जब गुन्नू से बोला बेटा खाना बना लू?<br>
गुन्नू - चाय चाय <br>
मैं - अरे चाय तो पी ली कबकी , अब खाना<br>
तुम क्या खाओगे?<br>
गुन्नू-टोटी,दाय (दाल ,रोटी) बोलकर और नजदीक आते हुए सुनाई दिया मम्मी गोदी ..<br>
मैं देख रही हूँ उसे और वो हाथ फैलाकर बोल रहा है गोदी <br>
खाना तो बन गया 😂 लड्डू ही खाएगें आज लग रहा 😋</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-10709048309543981202017-12-28T17:17:00.001+05:302017-12-28T17:17:33.276+05:30कुछ नोट्स<p dir="ltr">गुन्नू- मम्मी मम्मी मम्मी<br>
मैं - हाँ क्या हुआ?<br>
गुन्नू- मम्मी आओ बैठें <br>
मैं- काम कौन करेगा फिर<br>
गुन्नू- हूट हूट<br>
मैं- अब ये क्या है<br>
गुन्नू- आऊल{ ऊल्लू हूट हूट बोलता है }<br>
फिर अचानक भागता है कुछ खिलौनों को जोड़कर ले आता है और मुझे डराते हुये कहता है ठकठक ( ट्रेक्टर को ठकठक कहता है)<br>
ठकठक को फेंककर फिर आ जाएगा<br>
गुन्नू- मम्मी <br>
मैं- हाँ<br>
गुन्नू- पूच्च ( चूम लेगा )<br>
और कहेगा गुयीगुयी ( गुदगुदी को गुयीगुयी)<br>
गजब है ये भी <br>
#बच्चों की लीला</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-38649063683493402332017-09-11T16:41:00.001+05:302017-09-11T16:41:43.155+05:30<p dir="ltr">किसी की आत्मा के मर जाने से अच्छा उसका खुद मर जाना है क्योंकि इंसानियत रहेगी तभी इंसान भी बचा रहेगा।<br>
#दुनिया के फेर में फँसी दीप्ति</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-51717746718282217192017-09-05T09:11:00.001+05:302017-09-05T09:11:29.509+05:30<p dir="ltr">मुस्कुरा रही हूँ मैं<br>
तभी तुम कहते हो <br>
हँस रहा हूँ मैं भी<br>
पर ! <br>
तुम्हारे हँसने<br>
और मेरे मुस्कुराने में<br>
बहुत अंतर है,<br>
एक स्त्री का मुस्कुराना<br>
तुम समझ नहीं सकते।</p>
<p dir="ltr">#मन की बात करती दीप्ति</p>
deepti sharmahttp://www.blogger.com/profile/10113945456813271746noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2032967677155293485.post-8653998239259893832017-09-05T09:08:00.001+05:302017-09-05T09:08:37.565+05:30<p dir="ltr">कल खाना बनाते हाथ जला तो यूँ ही कुछ लिखा </p>
<p dir="ltr">हाथ का जलना <br>
क्रिया हुयी या प्रतिक्रिया !<br>
सोच रही हूँ<br>
कढाही में सब्जी पक रही<br>
गरम माहौल है<br>
पूरी सेंकने की तैयारी<br>
आटा गूँथ लिया,<br>
लोई मसल बिलने को तैयार<br>
पूरियाँ सिक रहीं हैं <br>
या यूँ कहूँ जल रही है<br>
हाँ मैं उनको गर्म यातना ही तो दे रही<br>
फिर हाथ जलना स्वभाविक है<br>
अब समझी <br>
ये क्रिया नहीं प्रतिक्रिया ही है</p>
<p dir="ltr">- दीप्ति शर्मा</p>
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