कीमत


बंद ताले की दो चाबियाँ
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
चाबियाँ टूट रहीं हैं
तो कभी मुड़ जा रहीं हैं
उसे खोलने के दौरान ।
अब वो उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत भी नहीं समझता
जिन्होंने उसे एक रूप दिया
उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत की कीमत से दूर वो
आज महत्वाकांक्षी बन गया है
अपने अहं से दूसरों को दबाकर
स्वाभिमान की कीमत गवां रहा है
© दीप्ति शर्मा

Comments

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
वाह बहुत खूब
स्वाभिमान अब अभिमान में बदल चुका है ... जल्दी ही टूटेगा अब ...

Popular posts from this blog

मैं

कोई तो होगा

नयन